सोमवार, 7 जून 2010

नियमितता बनाम अनियमितता

आज बहुत दिनों के बाद अपना ब्लाग खोला ।देखा तो आगंतुक घड़ी १७३८० की संख्या दिखा रही है ।इस बीच अपने ब्लाग को छोड़ ब्लाग जगत मे विचरण कर रहा था । कौन क्या लिख रहा है,कौन क्या टिपिया रहा है,कौन कहाँ गरिया रहा है ।इस दौरान यहाँ इतने लोग मुझे खोजने आये और मै उपलब्ध नहीं था ।अत: गलती के सुधार हेतु तथा अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये ये पोस्ट ठेल रहा हूँ ।

आगंतुक घड़ी में १७३८० की संख्या देखकर मन प्रफ़ुल्लित है।सोचता हूँ कि नियमित पोस्ट लिखूँ ,तो एक दो महीनोँ मे ये संख्या १,००,००० तक पहुँच जायेगी । फिर गूगल बाबा ,एड वाले बाबा सब पीछे पीछे घूमेंगे ,- संजीव भाई हमारा भी एड अपने ब्लाग मे डाल दो ना।फिर तो हर पोस्ट में टिप्पणियों की धूम रहेगी । समीर भाई,ज्ञान भाई, अनूप भाई,सुरेश भाई और भी जो ब्लाग जगत के धुरंधर भाई लोग हैं सब यहाँ टिपिया कर जायेंगे ताकि पाटकों को उनका लिंक मिलता रहे ।

सोचता हूँ कि अब नियमित हो ही जाऊँ ,हालांकि इस मामले मे मेरा पुराना रिकार्ड ठीक नहीं है।प्रात:भ्रमण कई बार शुरु किया ,जिम भी ज्वाइन किया ,पर कुछ दिनों बाद सद्बुद्धी आ जाती है कि शरीर को कष्ट देना उचित नहीं ।प्रकृति ने नींद सोने के लिये दिया है ,अलार्म लगाकर जगने के लिये नहीं।कहा भी गया है - शरीरमाद्यम खलु धर्म साधनम।सुक्ष्म रुप से देखा जाये तो जिस तरह कार्य-कारण एकरूप हो जाते हैं उसी तरह साध्य और साधन भी एकरूप हो जाते हैं अर्थात शरीर को कष्ट देना या उसके विरोध मे जाना ,धर्म के विरोध मे जाना है।हम भारतीय लोग धार्मिक लोग हैं हम लोग भला धर्म के विरोध मे कैसे जा सकते हैं और प्रात:भ्रमण जैसे कार्य मे कैसे संलग्न हो सकते हैं।यही सोच कर मै खिड़की बंद कर सो जाता हूँ ।

लेकिन अब सोचता हूँ कि नियमित हो ही जाऊँ ।